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"वर दे!" (डॉ. विद्या सागर कापड़ी)



   
  वर दे ।      
वर दे..........

  वर दे वर दे मातु सरस्वती ।
    वर दे...........

श्वेत वसन सुरमय वीणा कर ,
      तिमिरपुंज हर हे ज्योतिर्मय ।
पग पर शूल बनें बाधा जब ,
       सुरभ सुमन कर दे।
                     वर दे ..........।
दंभ कपट से दूर रहे तन ,
       पल.पल 
श्वेत धवल सा हो मन ।
ज्ञानहीनता की तलछट को ,
       हे हंसवाहिनी हर दे ।
                     वर दे........ ।
अधरों से पुष्प प्रस्फुटित हो ,
        कर से नित नव काब्य रचित हो ।
रस छन्दों से सींचित करके,
       काब्यभाव भर दे ।
                वर दे.......






BHAGIRATHI  – (6 March 2011 at 01:19)  

मित्रो!
मैं अभी ब्लॉग जगत में बिल्कुल नया हूँ!
आपके आशीर्वाद का आकांक्षी हूँ!

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